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हिन्दी व्याकरण

हिंदी व्याकरणहिंदी भाषा को शुद्ध रूप में लिखने और बोलने संबंधी नियमों का बोध करानेवाला शास्त्र है। यह हिंदी भाषा के अध्ययन का महत्त्वपूर्ण अंग है। इसमें हिंदी के सभी स्वरूपों का चार खंडों के अंतर्गत अध्ययन किया जाता हैयथा - वर्ण विचार के अंतर्गत ध्वनि और वर्णशब्द विचार के अंतर्गत शब्द के विविध पक्षों संबंधी नियमोंवाक्य विचार के अंतर्गत वाक्य संबंधी विभिन्न स्थितियों एवं छंद विचार में साहित्यिक रचनाओं के शिल्पगत पक्षों पर विचार किया गया है।

लिंग[

हिन्दी में सिर्फ़ दो ही लिंग होते हैंस्त्रीलिंग और पुल्लिंग। कोई वस्तु या जानवर या वनस्पति या भाववाचक संज्ञा स्त्रीलिंग है या पुल्लिंगइसका ज्ञान अभ्यास से होता है। कभी-कभी संज्ञा के अन्त-स्वर से भी इसका पता चल जाता है।

पुल्लिंगपुरुष जाति के लिए प्रयुक्त शब्द पुल्लिंग में कहे जाते हैं। जैसे - अजयबैलजाता है आदि

स्त्रीलिंगस्त्री जाति के बोधक शब्द जैसेनिर्मलाचींटीपहाड़ीखेलती हैकाली बकरी दूध देती है आदि।

वचन[

मुख्य लेखवचन (व्याकरण)

हिन्दी में दो वचन होते हैं:

एकवचनजैसे राममैंकालाआदि एकवचन में हैं।

बहुवचनहम लोगवे लोगसारे प्राणीपेड़ों आदि बहुवचन में हैं।

कारक[

 कारक होते हैं।

कर्ताकर्मकरणसम्प्रदानअपादानसंबन्धअधिकरणसंबोधन।

किसी भी वाक्य के सभी शब्दों को इन्हीं  कारकों में वर्गीकृत किया जा सकता है। उदाहरणराम ने अमरूद खाया। यहाँ 'रामकर्ता है, 'खानाकर्म है।

 

मुख्य लेखसंबन्ध बोधक

दो वस्तुओं के मध्य संबन्ध बताने वाले शब्द को संबन्धकारक कहते हैं। उदाहरण -

'यह मोहन की पुस्तक है।यहाँ "कीशब्द "मोहनऔर "पुस्तकमें संबन्ध बताता है इसलिए यह संबन्धकारक है।

काल[

मुख्य लेखकाल और काल के भेद

वाक्य तीन काल में से किसी एक में हो सकते हैं:

वर्तमान काल जैसे मैं खेलने जा रहा हूँ।

भूतकाल जैसे 'जय हिन्दका नारा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने दिया था और

भविष्य काल जैसे अगले मंगलवार को मैं नानी के घर जाउँगा।

वर्तमान काल के तीन भेद होते हैंसामान्य वर्तमान कालसंदिग्ध वर्तमानकाल तथा अपूर्ण वर्तमान काल।

भूतकाल के भी छे भेद होते हैं समान्य भूतआसन्न भूतपूर्ण भूतअपूर्ण भूतसंदिग्ध भूत और हेतुमद भूत।

भविष्य काल के दो भेद होते हैंसामान्य भविष्यकाल और संभाव्य भविष्यकाल।

वाच्य किसे कहते हैं।

वाच्य की परिभाषा – क्रिया के जिस रुप से यह जाना जाए की वाक्य में क्रिया द्वारा कही गई बात का विषय कर्त्ता हैअथवा कर्म हैया भाव हैउसे वाच्य कहते हैं।

वाच्य के प्रकार 

हिन्दी व्याकरण में वाच्य के तीन प्रकार होते हैं जो की नीचे बताया गया हैं –

 1 . कर्तृवाच्य

2 . कर्मवाच्य

3 . भाववाच्य

 

1 . कर्तृवाच्य 

 

इसमें कर्त्ता प्रधान होता है और क्रिया का सीधा और प्रधान संबंध कर्त्ता से होता है।

 जैसे – ‘मनीष खत लिखता है।’ इस वाक्य में ‘लिखता है’ क्रिया का प्रधान उद्देश्य ‘मनीष’ कर्त्ता है। मनीष लिखता है – यह मुख्य वाक्य हैइसीलिए यह वाक्य कर्तृवाच्य है।

 — कर्तृवाच्य में क्रिया के लिंग और वचन कर्त्ता के अनुसार होते हैं। कर्तृवाच्य में सकर्मक क्रिया और अकर्मक क्रिया के भी वाक्य होते हैं।

 जैसे –

 सकर्मक —– अकर्मक

(.) श्याम पत्र लिखता है। —– श्याम रोता है।

(.) लड़कियाँ लेख लिखती हैं। —– लड़के सोते हैं।

(.) सोनिया किताब पढ़ती हैं। —– रामा हंसती है।

 2 . कर्मवाच्य 

 इसमें कर्म प्रधान होता है अर्थात कर्म कर्त्ता की स्थिति में होता है और क्रिया का संबंध सीधा कर्म से होता है। क्रिया के लिंग और वचन भी कर्म के अनुसार ही होते हैं।

 जैसे – सुशील से पत्र लिखा जाता है। इस वाक्य में ‘लिखा जाता है’ क्रिया का मुख्य सम्बन्ध ‘पत्र’ कर्म से है। इसीलिए यह वाक्य कर्मवाच्य है। कर्मवाच्य में वाक्य केवल सकर्मक क्रिया से ही होते हैंअकर्मक क्रिया के नहीं।

 उदाहरण –

 देवेंद्र द्वारा पुस्तक लिखी जाती है।

हरीश से पत्र पढ़ा गया।

ओमप्रकाश के द्वारा भोजन किया गया।

 

— कर्त्ता के ज्ञात  होने परसरकारी सूचनाओं मेंवैज्ञानिक या शास्त्रीय विवेचनों में तथा सभा आदि की रिपोर्ट में कर्मवाच्य का प्रयोग होता है।

 3 . भाववाच्य

इसमें भाव (धातु के अर्थकी ही प्रधानता होती हैकर्त्ता या कर्म कि नहीं। इसमें क्रिया सदा एकवचनपुल्लिंग और अन्य पुरुष में रहती है। इसका अधिक प्रयोग निषेधार्थक वाक्यों में होता है।

 जैसे – ‘चला नहीं जाता,’ ‘बैठा नहीं जाता।’ इसमें केवल अकर्मक क्रिया के वाक्य ही हो सकते हैंसकर्मक क्रिया के नहीं।

 — कर्मवाच्य में केवल सकर्मक क्रिया का प्रयोग होता है। क्योंकि भाववाच्य में क्रिया अकर्मक होती हैइसीलिए कर्म नहीं होता। कर्म  होने के कारण किया के भाव को कर्त्ता बना लिया जाता है। प्रधान कर्त्ता सामने ‘से’ लगा दिया जाता है।

 जैसे –

 लड़का पढता है।

लड़के से पढ़ा जाता है।

उपसर्ग[

मुख्य लेखउपसर्ग

वे शब्द जो किसी दूसरे शब्द के आरम्भ में लगाये जाते हैं। इनके लगाने से शब्दों के अर्थ परिवर्तन या विशिष्टता  सकती है। प्रमोद = प्रमोदसु + शील = सुशील

उपसर्ग प्रकृति से परतंत्र होते हैं। उपसर्ग चार प्रकार के होते हैं -

संस्कृत से आए हुए उपसर्ग,

कुछ अव्यय जो उपसर्गों की तरह प्रयुक्त होते है,

हिन्दी के अपने उपसर्ग (तद्भव),

विदेशी भाषा से आए हुए उपसर्ग।

प्रत्यय[

मुख्य लेखप्रत्यय

वे शब्द जो किसी शब्द के अन्त में जोड़े जाते हैंउन्हें प्रत्यय (प्रति + अय = बाद में आने वालाकहते हैं। जैसेगाड़ी + वान = गाड़ीवानअपना + पन = अपनापन

 

 

 

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